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Thursday, July 4, 2013

सकड़ व् सांचे देवीय अवतार - श्री १००८ सतीबाजी महाराज-

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

घोडा माथे बीराजता, सिद्द करता सब काज ।
पिरथम थारो सुमरण करू,सती -बाजी महाराज ।।

गर्भगृह में ज्योत प्रज्वलन  
ककराना ग्राम के दक्षिण दिशा में दीपपुरा मार्ग पर एक ऊँचे टीले के निचे ढलान भाग पर श्री सती -बाजी महाराज का मंदिर अवस्थित है ।इनके अवतरण के बारे में सुना जाता है वह लगभग २५० वर्ष पूर्व का वह समय रहा होगा । इनके पति का नाम दूल सिंह शेखावत था व् इनका नाम चत्तर कँवर था। विवाह के कुछ समय पश्चात चतर कँवर के पति दूल सिंह का अल्पायु में आकस्मिक निधन हो गया था । पति के अकश्मिक निधन के पश्चात इनमे देवत्व-तेज जाग उठा था।और संसारिक जीवन की क्षण -भंगुरता व् जीवन से निर्लिप्त होकर इनमे सतीत्व का भाव बना था ।
उस काल में अनेकों गाँव-ठिकानो में कुलीन राजपूत स्त्रियों में ईश्वरीय उपासना की प्रगाढ़ता व् परस्पर वैवाहिक संबंधों की मजबूती से पति के स्वर्गवास के पश्चात सती-जती होने के अनेकों उदाहरण इतिहास के सुनहरे पन्नो पर दर्ज है ।राजस्थान के अनेकानेक गाँव -ढाणियों में झुंझार -सती के मंदिर -देवरे इनके प्रमाणों को पुष्ठता प्रदान करते है ।
सती जी का जन्म चुरू जिले के एक गाँव में जन्म हुआ था। यह बिदावत -राठोड राजपूतों की पुत्री थे ।
बाजी ने सती होने से पूर्व बताया की केड गाँव के एक ठाकुर की गर्भवती घोड़ी है ।उस घोड़ी के गर्भ में जिव अंश के रूप में मेरे पति का जीवांश अवस्थित होगा। जिसका ठीक आज से सातवे दिन गर्भपात होगा ।और यहाँ रखी हुयी नीम की दातुन दो भागों में स्वतःही विभक्त हो जाएँगी । तब मेरा विधिवत देवरा धोरे के ऊपर बना कर मेरी मान्यता स्वीकार करना।
बताते है उनके सती होने के बाद सातवें दिन केड ठाकुर की घोड़ी का गर्भपात हुआ ।व् इधर सती वाले स्थान पर रखे हुए दातुन दो फाड़ो में विभक्त हो गए थे ।पीहर पक्ष की आंचलिक भाषा के अनुसार इन्होने अपने देवरे के उपलक्ष में कहा "म्हारो मंदिर धोरा माथे बणावज्यो "।मारवाड़ -बागड़ प्रदेश की तरफ "धोरा" टीले को बोला जाता है जब की शेखावाटी क्षेत्र में कुवे के पानी को क्यारियों में छोड़ने के लिए मिटटी की मेड से बनी हुई छोटी नहर को "धोरा "कहते है ।और उसी समझ के अनुसार पानी के धोरे पर बनवा दिया गया था।जो की बाजी की इच्छा के अनुसार नहीं था ।जिसके फलस्वरूप कुछ समय में ही मंदिर में दरारें आ गयी व् पुराना प्रतीत होने लग गया था । मंदिर का द्वार उत्तरमुखी है व् सामने विशाल सघन वटवृक्ष है ।वही सामने ही जानकी दादी के द्वारा बनवाया हुआ विश्राम गृह है । बाजी के मंदिर के आस पास रियासतकाल में ओरण(भूमि) छोड़ा गया था । मंदिर के आस पास का भूभाग सती वाली ढाणी के नाम से जाना जाता रहा है । सती वाली ढाणी में सैनी परिवार निवास करते है । 
सती -बाजी की मान्यता व् महिमा को शब्दों में पिरोना संभव नहीं है । राजपूत समाज के अलावा अन्य समाजों में भी इनकी मान्यता है । सच्चे मन से स्मरण करने से मनोवांछित कार्य पूर्ण होते है। मंदिर में बाजी की नयनाभिराम मूरत को देखते ही एक अलोकिक दिव्य शक्ति का आभास होता है ।राजपूत परिवारों में किसी भी मंगल कार्य के प्रारंभ से पहले सती जी की महिमा में मधुर गीत महिलाएं कुछ इस प्रकार से गाती है
या माता ककराणा की सकड़ साँची है
या माता बिदावत जी सकड़ साँची है ।।
वही सती जी के श्रृंगार की महिमा में कुछ इस प्रकार से अर्चन करती है
"माता जी न चुडलो सोहे ,जगदम्बा न चुडलो सोहे
चुडल री शोभा न्यारी सा ,थान सींवरा राज भवानी"
सती- बाजी ने सती होने से पूर्व राजपूत समाज में कुछ आण दी थी।उनकी इन वर्जनाओं का आज भी सिद्दत से पालन किया जाता है ।
१.आपके व् वंशजों के द्वारा कभी भी घर -परिवार में "छींके"का प्रयोग नहीं किया जावे ,(पहले लोग अपने कच्चे घरों में खाने-पिने की वस्तुओं को मिटटी के बर्तनों में डालकर खींप के छींके में लटकाकर रखते थे ।)
२.राजपूत महिलाएं बैठने में पीढ़े का इस्तमाल कभी भी नहीं करें ।जैसा की आज भी महिलाये भूमि पर दरी -जाजम बिछाकर कर बैठती है ।
३.महिलाये कभी भी काले पल्लू की ओढ़नी नहीं ओढ़े ।

पुराने समय में सती बाजी के प्रसाद के रूप में मीठा "दलिया" का भोग लगाया जाता था ।प्रतेक शुक्ल पक्ष की द्वादशी (बारस) को राजपूत परिवारों के बड़े-बच्चे धोक के लिए जाते थे।विगत लम्बे समय से जिर्नोदार नहीं होने से मंदिर काफी जीर्ण अवस्था में हो गया था ।अभी 2008 में मंदिर का जीर्णोद्वार श्री महावीर सिंह शेखावत ने करवाया है ।ढाणी में रहने वाले सैनी परिवार सती- बाजी की सुबह शाम मंगल पूजा व् दीपदान मनोयोग से करते है ।राजपूत समाज में विवाहोपरांत नवविवाहित जोड़ों की धोक लगाने सतीजी के अनिवार्य रूप से आते है ।प्रतेक माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी (बारस) को सती -बाजी की ज्योत जलाई जाती है व् प्रसाद चढ़ाया जाता है। दीपावली के पावन त्योंहार पर भी घरों में दीप प्रज्वलन से पूर्व सती -बाजी के दीपक व् ज्योत सामूहिक रूप से जलाई जाती है ।
चरण कमल में बंदना,माथे राखज्यो हाथ ।
शरण पड्या ने अपनायज्यो ,करज्यो माँ कर्तार्थ।।



Category-लोक देवता  

2 comments:

  1. जय हो माता सतीबाजी की माता रानी सब पर महर बनाए रखे

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  2. राजस्थान के इतिहास मे बहुत कुछ है जो वक़्त के साथ विलीन हो गया, रही सही कसर पंडावाद ने पूरी करदी और अगर उनसे भी कमी रह गई तो सरकारी तंत्र तो लगा ही है जड़े उखाड़ने मे

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