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Friday, August 8, 2014

श्री १००८ बाबा सुन्दरदास जी महाराज का मेला

गजेन्द्र सिंह शेखावत 
शेखावाटी के विस्तृत भूभाग पर अनेक महापुरुषों ,लोकदेवताओं ,शहीदों के मेले लगते रहे है । इन मेलों में ग्राम्य जीवन की मिठास छिपी होती थी। श्रद्धा के सैलाब में मेल जोल व् दैनिक जीवन की वस्तुओं की खरीद तो होती ही थी । इसके अलावा लोकानुरंजन के भी यही माध्यम होते थे
बबाई खेतड़ी मार्ग पर पर्वत की सुरम्य उप्यातिकाओं की तलहटी में बसा एक छोटा सा गांव है "गाडराटा" | इस गांव की मुख्य पहचान अंचल के सिद्ध बाबा श्री सुंदरा दास जी महाराज के तपोभूमि बनाये जाने से है । सुन्दर दास की खेतड़ी ,उदयपुरवाटी ,नारनौल ,नीमका थाना के सुदूर गांवों में गहरी श्रद्धा व् मान्यता है । बाबा सर्पदंश निवारक देव के रूप में जनमानस में पूज्य है । शेखावाटी के प्रमुख मेलों में से एक भादवा सुदी तेरस को बाबा सुन्दरदास का लख्खी मेला लगता है ।

मेले के दौरान इस अंचल के सभी मार्ग बाबा सुन्दरदास महाराज की जय से गुंजयमान रहते है । बाबा के भोग की मीठी कढ़ाई गठरी में दबाये नर नारी, बच्चे मेले की उत्सुकता में प्रायकर हर उस और जाने वाले मार्ग पर द्रस्टिगोचर हो जायेंगे ।पुराने समय में तो गाँवो के झुण्ड के झुण्ड पद यात्री मेले के प्रस्थान के लिय भोर में ही शॉर्टकट नाका डूंगर के मार्ग से निकलते थे ।

वर्तमान परिद्रस्य की अपेक्षा उस समय मेले ,त्योंहारों का ग्रामीण जन जीवन में उत्साह भागीदारी व् मेलमिलाप व्यापक था ।मुख्यरूप से बड़े झूलों,मौत का कुवा व् जादूगरी करतब आदि का आनंद इसी मेले में आता था ।
मेले में हर गांव का एक नियत स्थान होता जहा इधर -उधर होने व् साथ छूट जाने पर पर इन्तजार किया जाता था । खेतड़ी ,नीमकाथाना की तरफ के महिलामंडल का अपने पीहर पक्ष के लोगों से मेलजोल इसी मेले में होता था । नयी रिश्तेदारियां बनायीं जाती । शादी योग्य युवक युवतियों के संबंो के बारे में चर्चाये होती व् एक दूसरे को देखे -दिखाए दिखाए जाते थे । महिलाये बेटी सगीयों को "मिळणे" देती थी । व्"सीठने व् गालें" गायी जाती थी | नव कप्पलस मेले में साज सिंगार की वस्तुए खरीदकर देते । मेले में खरीददारी करने के उपरांत सिनेमा प्रेमी युवक खेतड़ी -कॉपर के सिनेमा हाल की तरफ रुख कर लेते थे ।
बाबा सुन्दरदास जी के मंडप तक पहुचना व् दर्शन करना अत्यंत दुर्लभ कार्य था । जात्रियों की लम्बी कतारें धकमपेल को देखकर देर से पहुंचे जातरी दूर से ही भोग कढ़ाई अर्पित कर देते थे ।मध्यरात्रि के बाद तक खचाखच भरी बसों में लोगों का घरों की और पलायन जारी रहता था । समय के साथ साथ मेले की रंगत फीकी जरूर हुयी है लेकिन बाबा के भोग सामग्री -प्रसाद आदि लोग अब भी पहुचाते है ।
बचपन के सुखद संस्मरण में बाबा सुन्दरदास भी हमेशा सुखद स्मृति के रूप में अमिट रहेंगे