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Monday, April 29, 2013

शख्सियत परिचय - उदयपुरवाटी के पूर्व विधायक स्व. इंद्र सिंह पोंख



गजेन्द्र सिंह शेखावत 

उदय पुर वाटी विधान सभा क्षेत्र के समाज के अंतिम व्यक्ति से जुड़े पूर्व विधायक श्री इन्दर सिंह पोंख के नाम को कौन नहीं जानता ?क्षेत्र की सियासत में इनका भी अपना अलग ही स्थान था ।
इन्दर सिंह पोंख स्पस्त्वादी,व् मिटटी से जुड़े हुए नेता थे ।इनकी लोकप्रियता का आलम यह था की ये पोख गाँव के ४५ साल तक सरपंच रहे । सन १९७७ में उदय पुर वाटी से जनता पार्टी से विधायक चुने गए।जीवन पर्यन्त संघर्षशील रहे इन्द्र सिंह ने 1962 व 1967 में स्वतंत्र पार्टी व 1990 में कांग्रेस टिकट पर विधायक का चुनाव लड़ा था मगर पराजित हो गये थे। उनके कोई संतान नहीं थी। उदयपुरवाटी से चाहे विधायक कोइ भी रहा हो ,परन्तु उनके समर्थक हमेशा उनके साथ रहे ।वह विभिन्न ग्रामीण लोगों के अभाव -अभियोग बिना किसी पद पर रहते हुए भी साथ जाकर सुलझाने में हमेशा प्रयासरत रहे।
पोंख का राजमाता गायत्री देवी ,विख्यात उद्योगपति घनश्याम दास बिरला,पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरों सिंह शेखावत ,रावल मदन सिंह नवलगढ़ व् पूर्व केंद्रीय मंत्री शीश राम ओला से निकटम सम्बन्ध थे ।
ये हमेशा अपनी बेबाकी व् वाकपटुता के लिए प्रसिद्ध रहे ।प्रशाशनिक अधिकारिओं के द्वारा किसी भी प्रकार की कोताही को ये बिना किसी लाग् लपेट के सीधी भाषा में लताड़ने से नहीं चुकते थे । इनकी धर्मपत्नी श्रीमती जोर कँवर
 भी उदयपुर वाटी से प्रधान रह चुकी है

Saturday, April 27, 2013

सज -धज बैठी गोरड़ी -राजस्थानी कविता


4-12-2012 : भास्कर भूमि, छत्तीसगढ़ 
गलती से अख़बार ने कविता लेखक गजेन्द्र सिंह शेखावत की जगह राजेंद्र सिंह शेखावत लिख दिया जिसे कृपया गजेन्द्र सिंह शेखावत ही समझे |
रतन सिंह जी भगतपूरा के चर्चित ब्लॉग ज्ञान दर्पण.कॉम पर यह कविता निम्न पर पढ़ी जा सकती है 
http://www.gyandarpan.com/2012/12/blog-post.html

Friday, April 26, 2013

शेखावाटी की भागीरथी - काटली नदी



गजेन्द्र सिंह शेखावत

काटली नदी राजस्थान के सीकर ज़िले के खंडेला की पहाड़ियों से निकलती है। यह एक मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर प्रवाहित होती है। नदी उत्तर में सीकर व झुंझुनू में लगभग 100 किलोमीटर बहने के उपरांत चुरू ज़िले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।
विगत १७-१८ सालों में जिस प्रकार से बारिश का पैमाना साल दर साल कम होता गया है ।वर्षा से पूरित जल श्रोत धीरे - धीरे सूखने लग गए ।सन १९९३-९३ में अंतिम अच्छी बारिश हुई थी ।उस समय वर्षा की झड़ी लगा करती थी ।झड़ी के रूप में होने वाली वर्षा ही भूमि की प्यास को पूरी तरह से मिटा पाती थी ।सूर्य देव पूर्ण रूप से बादलों की ओट में छुप कर बैठ जाते थे।आरावली पर्वत से अपार जल के आने से बाढ़ की जमीं का बंधा उसी साल टुटा था ।गाँव का निचला हिसा पूरी तरह जलमग्न हो गया था ।छप्पर तो एक तरफ पक्के मकानों की छते भी टपकने लग गयी थी ।
उसके बाद लगातार ४-५दिनों तक बारिश की झड़ी कभी नहीं लगी ।हर साल बारिश तो होती है ,परन्तु कुछ समय में रुक जाती है ।जिससे धरती की गहराईयों में स्तिथ जल शिराओं तक जलराशी नहीं पहुँच पाती है|परिणाम स्वरुप भूमि के द्वारा उस जल का तुरंत अवशोषण कर लिया जाता है व् वाष्प बनकर उड़ जाता है ।

शेखावाटी क्षेत्र की परमुख बरसाती नदी काटली इस क्षेत्र की भागीरथी है ।अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद से जन्म लेने के बाद विभीन गांवोंसे निकली नालियों ,छोटे छोटे नालों व् पठारों से निकली जल की कुपिकाओं को अपने आप में समाहित करती हुई आगे बढती है ।किसी समय में यह पुरे वेग के साथ उफनती हुई गुमावदार बलखाती हुई बहती थी ।लगभग आधा किलोमीटर का क्षेत्र इसके आगोश में होता था ।अपने चिरपरिचित मार्ग से यह जब निकलती थी तो तटवर्ती गांवों का आवागमन अवरुद्ध हो जाता था ।सीमावर्ती गाँवों का संपर्क टूट जाता था । कुछ सधे हुई तेराक नदी के तट पर सहायता के लिए उपलब्द रहते थे ।गांवों का जनसमूह तटों पर मानो इसके स्वागत के लिए जमा हो जाया करते था।उस दौरान इस क्षेत्र का मिठा पानी का स्तर स्वतः ही बढ़ जाया करता था । तेराकी के शोकिनो के लिए इसके बहाव के ख़त्म हो जाने के बाद बने छोटे -छोटे तालाब सिखने का जरिया होते थे ।जहाँ वो अपनी जिजीविषा को शांत करते थे ।

इस नदी के शबाब पर होने के दौरान आवागमन पूरी तरह से ठहर जाता था ।कई -कई बार तो २-३ दिन तक पानी का वेग नहीं रुकता था।ऐसे में कॉपर प्रोजेक्ट के द्वारा ३५ -४०
साल पहले दोनों मुहानों को जोड़ने के लिए रपटे(सीमेंट की रोड ) का निर्माण करवाया गया ।ये रपटा मजबूत ककरीट पत्थर लोहे व् सीमेंट के योग से बना है ।जिससे यह आज भी पत्थर की मानिंद वैसे ही डटा हुआ है ।
परन्तु अब न तो वह बारिश की झड़ी लगती है और न ही ये नदी मचलती हुई आती है ।इन १७-१८ सालों में जन्म लेने वालों के लिए तो यह मात्र काल्पनिक कहानी बनकर रह गयी है ।आज सुदूर तक इस नदी के पाट व् बीच के क्षेत्र में कुचे व् आक के पौधे खड़े हुए निरंतर इसके आगमन के लिए प्रतीक्षारत है ।वहीँ दूसरी और मनुष्यों ने नदी के बहाव क्षेत्र में आवासीय निर्माण कार्य कर के इसके भविष्य में नहीं आने के प्रति पूरी तरह से आस्वश्थता जता दी है ।कई जगह छोटे छोटे बांध भी बना दिए गए है ।काटली नदी के बहाव क्षेत्र में गुहाला के समीप चिनाई में प्रयुक्त होने वाली उत्तम किस्म की बजरी होती है ।जहाँ से सुदूर स्थानों पर परिवहन होता है ।
क्या फिर से काटली नदी कभी आ पायेगी ?इसका उत्तर प्रक्रति के स्वरुप में छिपा हुआ है । 

उसने छोड़ दिया आना -जाना 
मानो कह रही हो मानव से 
तूने अच्छा सिला दिया मेरे दुलार का 
तुमने हमेशा देखा अपना हित
और की मेरी अनदेखी
बस अब बहुत हो चूका 
अब और नहीं सह पाऊँगी 

पहले वह थमी
फिर कुम्हलाई एक बेल की तरह
फिर बन गई सूखती हुई लकीर
और आज रह गयी दूर- दूर तक सिर्फ रेत............>>

Thursday, April 18, 2013

म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव



गजेन्द्र सिंह शेखावत 


म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव ।
कोरा कोरा मटका रो सोंधो -सोंधो पाणी।
गर्मी रा मौसम को कलेवो, छाछ - राबड़ी और धाणी
पीपल अर खेजड़ा री, ठंडी शीतळ छांव
म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव ।।(1)
पावणा रो अठै होवै मोकलो सत्कार
टाबर ,जिव -जिनवारां न हेत रो पुचकार
सीधा सांचा लोग अठा रा, त्योंहारा रो चाव
म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव ।।(2)

केर कमटिया सांगरी का मेवा री सुवास
धर्म दान और वीरता रा मंड्या पड्या इतिहास
नर -नारयां रो अठे ,फुटरो बणाव्
म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव ।।(3)

प्याऊ ठंडा पानी का, हेला रो हेत अठै
मीठी बोली ऱी अपणायत आ सोना जेड़ी रेत् कठै
दुबड़ी ऱी जड़ की तरियां, आपस रो जुडाव
म्हारे मरुधर देश रा प्यारा ढाणी-गाँव ।।(4)


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