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Thursday, February 6, 2014

ककराना के रईस सेठ दुलीचंद ककरानिया

गजेन्द्र सिंह शेखावत 
शेखावाटी की पावन धरा अनेक रणबांकुरो ,धनकुबेरो ,त्यागी -तपस्वी,महापुरुषों की क्रीडा स्थली रही है ।इस मिटटी के कण -कण में दस्ताने छुपी हुयी है ।जो की अधिकांशतःजनमानस की स्म्रति से विस्म्रत हो चुकी है ।
ककराना गाँव एक संतुलित जातिगत समीकरण वाला गाँव रहा है । पुराने समय में गाँव के काफी सेठ परिवारों का पलायन व्यापार के संदर्भ में हो चूका है । ककराना से निकले बहुत से सेठ परिवारों ने अपना टाईटल गोत्र के स्थान पर "ककरानिया"लगा लिया ।जिन्मे बहुत से परिवार आज भी चिड़ावा में निवास करते है | इसी धरा पर ही जन्मे एक सेठ थे दुलीचंद ककरानिया ।दुलीचंद अपने ज़माने के रईस सेठों की गिनती में आते थे ।ककराना की तंग गलियों से निकलकर इन्होने कलकत्ता महानगर में अपना व्यवसाय स्थापित किया ।उनका रिहायस घर उस समय की कलकत्ता की प्रमुख सुंदर कोठियो में एक थी ।कोठी के सामने सुंदर बगीचा उनके रहिसपन की बानगी ही थी ।सेठजी का मिटटी से लगाव इतना था की अपने नाम के आगे गाँव का टाइटल लगाकर ककरानिया के नाम से जाने गए ।सुनने में आता है की एक बार ग्रामीण प्रवास पर उन्होंने गाँव की सुनियोजित बसावट करने की मनसा प्रकट की ।उनकी इच्छा थी की गाँव के मुख्य रास्ते पक्के ,स्ट्रीट लाइट व् गाँव का व्यवस्थित चोपड़ बाजार हो । परन्तु तत्कालीन युवा लोगो ने अपने गाँव के वर्तमान स्वरुप को ही प्रिय बताकर इसके प्रति अनिच्छा प्रकट की ।सेठ जी इत्र- कुलीन के बहुत शोकिन थे । जनश्रुति के अनुसार उन्होंने इंदिरा गांधी को अपने निवास पर नोटों कि गड़िया जलाकर चाय बनाकर पिलाई थी । इस बात में कितनी सचाई है ,कहा नहीं जा सकता |
वर्त्तमान में भी उनका वंश परिवार अपना सरनेम ककरानिया लगाता है । उनके व्यापर के उत्पादों का चिन्ह ककरानिया नाम से है | हालाँकि उनमें से कोई गाँव में कभी आया नहीं है लेकिन उन्हें इतना पता है की उनके पुरखों की जन्म स्थली ककराना नामक गाँव रहा है ।
वर्त्तमान में भी बहुत से लोग बड़े स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों में शुमार है परन्तु समाजभाव नगण्य सा है । आज के व्यापारी ने अपने वित्त का बड़ा हिस्सा स्व आमोद प्रमोद पर खर्च करने का शगल बना लिया , जिससे समाज भावना विलुप्त होने कि कगार पर है |