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Monday, July 8, 2013

पित रंग की चुनर ओढ़े...


 

गजेन्द्र सिंह शेखावत

पित रंग की चुनर ओढ़े, खेत मेरे लहराए
फागुन की मद-मस्त बहार, हुक सी जगाये ||
कुदरत भी रंग बरसाए ,अपने कैनवास से
वृद्ध भी जवां हुआ, मस्त फागुन मास में ।|


कोयल -पपीहा गाए गीत, मधुर मधुमास में
बिरहा का अंतर भी तडफे, पिया मिलन की आस में ।|

चंग-मंजीरे की थापे, गूंजे आधी रात में
देख निहारे गोरी चढ़कर, घर की ड्योढ़ी - छात में ।|


यौवन फिर से दस्तक देता, बूढी जर्जर काया में
मद मस्त हो झूम उठा मन ,गीत प्रेम के गाया में ।|

बच्चों की टोली खेले धोरों पर ,उज्जवल धवल रात में
सब मिलजुलकर एक हो यहाँ ,भूले जात-पांत ने।|


फागुन की सतरंगी सीख, जीवन है जोश ,आशा का
प्रकृति के सौम्य रूप को जानो ,मान करो मूक भाषा का ।|


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