गजेन्द्र सिंह शेखावत
पित रंग की चुनर ओढ़े, खेत मेरे लहराए
फागुन की मद-मस्त बहार, हुक सी जगाये ||
फागुन की मद-मस्त बहार, हुक सी जगाये ||
वृद्ध भी जवां हुआ, मस्त फागुन मास में ।|
कोयल -पपीहा गाए गीत, मधुर मधुमास में
बिरहा का अंतर भी तडफे, पिया मिलन की आस में ।|
देख निहारे गोरी चढ़कर, घर की ड्योढ़ी - छात में ।|
यौवन फिर से दस्तक देता, बूढी जर्जर काया में
मद मस्त हो झूम उठा मन ,गीत प्रेम के गाया में ।|
सब मिलजुलकर एक हो यहाँ ,भूले जात-पांत ने।|
फागुन की सतरंगी सीख, जीवन है जोश ,आशा का
प्रकृति के सौम्य रूप को जानो ,मान करो मूक भाषा का ।|
Read more: http://www.gyandarpan.com/2013/03/blog-post_2.html#ixzz2MReo81O
No comments:
Post a Comment