todar mal

Tuesday, October 20, 2015

दशानन

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

भीमकाय शस्त्रों से सुसज्जित बारूद के शोर में ।
दशानन का दहन होगा, है हल्ला चहुँ और में ।
भीड़ का उत्साह कोलाहल डब- डब छलक रहा था
सतरंगी रोशनी में खड़ा दीप्त, भयानक दहक रहा था ।
रावण की दशों भुजाये शस्त्रोजित और अट्ठास करता मुंड
शायद उसकी मनो दशा से, अनभिज्ञ था  उपस्थित झुण्ड ।
मानो कह रहा था असुर मैं कल भी था आज भी हू
हर रोज हूँ, नित्य हूँ सर्वज्ञ व् सर्वव्यापक हूँ ।
मरते नहीं दैत्य कभी मूर्खों, कुछ यूँ गरजा तब लंकेश
और भीड में से मेरे असंख्य, पहले पहचानों तुम वेश ।
राम की मर्यादा ,शील सीता का, किस -किस में है कहो
अगर नहीं उत्तर है तो फिर , पुतले यूँ ही जलाते रहो ।।





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Sunday, August 9, 2015

सावन में माँ मनसा यात्रा की यादें

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

मेल-बिछोह परसपर दोनूं है जीवन का खेल। 
बड़ो मजो यात्रामें आतो ,जद जाता रेलमपेल।।
               तीन मील की विकट चढ़ाई , झरना को कळ -कळ कौल ।
               बीच राह में मिले जातरी ,जय माता दी बोल ।|
कोई लूण का मुठा लयातो कोई आटों और तेल
कोई पैसा को हिस्सों देतो ,कोई हो ज्यातो गेल ॥
               बरसां का मिलबा का वादा, यारी टीस जगाती।
               सावण को मतवालो मौसम, बाळपणै रा साथी ।
कुंडा की चादर में न्हाता ,उची छलांग लगाता
डाहढा की निझर को पाणी दाल चुरमो बणाता ।
                परबत का अंतस सु झरतो मिठो मधरो पाणी |
                मुसळ का लागी धमडका , नौपत बाज ज्याणी ॥
कुदरत का निजारां बी च,छक र लेता जीम ण
स्याणा,भोला सब मेल का ,और बिगड़ेड़ा तीवण ॥
             दुर्गम भयानक परवत बी च माता की सकलाई
             अंगुल सदृश मनसा माता ,मन म घणी है समाई ॥

Saturday, July 25, 2015

ककराना सुयश>

गजेन्द्र सिंह शेखावत 
डूंगर, टीबा ,नदी नाखळा 
गुणी , नळौ और,घाटी । 
खेड़ा , बाढ़ ,नाम खेतका,
कोई बंधो -कोई फांटी ॥ (1)

नर नाहर सदा निपजति
उर्वर महकती माटी
जगां -जगां बरगद की छाया,
खेत खेत म जांटी ॥(2)

पील पीमसयाँ ,अमरुद घणेरा
शहतूता और बेर
सांगरिया की लड़या निपजे ,
खीप खींपोळी केर ॥ (3)

डाब,दचाब , घास मोकळो
झेरण -भरूठ्यो , साठी
भरोट्यां लोग -लुगायां ल्याव ,
दिन उगी भाग फाटी ||(4)

कठे- पुराणो छपर झांक
कठे छान की टाटी
रेवड़ वाला सोवे निरभै ,
जुड़ कुवाडी झाठी ||(5)

भेड़ बकरियाँ ऊंट लरजता
देशी कुम्भी राठी
रोट बाजरा का सियाले
छठ -चौमासे बाटी ॥ (6

खिचड़ला का लागीं सबड़का
सक्कर घी की चांठी ।
मांगी मिलयाँ भी अमृत ला ग
छाछ गांव की खाटी ॥(7)

टाबर- टीकर स्कूलां जावे ,
ले हाथां बरता -पाटी |
शहर-परदेशा जावन हाला ,
चढ़ गाडी जा घाटी ॥(8)

प्रेम प्यार सूं रेवनहाला
ना झगड़ा ना लाठी ।
कितरो करा बखान इणरो,
आ मूँगा सूं मोती माटी ॥ (9)

Sunday, May 31, 2015

आरक्षण की दोगली नीति

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

आरक्षण की रेवड़ी,
कर दियो बंटाधार |
गरीब आज भी गरीब है ,
नेता को ब्योपार ।|
आजादी के क़ानून में
करदी तगड़ी रार |
एक बजावे झूंझणो,
दूजो खावे खार ॥
जाट पात न मेटन सारू
नेता घणा गा जै
कठे घोषणा कर अटल जी ,
कठे वसुंधरा रा जे
धर्म निरपेक्ष ,एक देश
अमीर- गरीब दो जाति
ऊँची जात को गरीब वंचित ,
चावे इमे पातीं ॥
टेम रेहतां इ लड़ाई न
नेतों थे अब मेटो ।
भेदभाव को यो दोगलो रासो ,
भींच नाख गो घेंटो ॥

Monday, May 25, 2015

राजस्थान की गर्मी का दूहा

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

ताती बाजे लूवां,
सुना -ढाणी  गांव |
तपती- बलती  बास्ते
 ज्यूँ सामो चूले- ताव ॥(1)

गर्मी की दोपहरयाँ,
कलडी तीखी धुप
मिनख जिनावर छापलरया ,
 कर्फ्यू को सो रूप ॥(2)

ध्यान राखज्यो बापजी र ,
कांदा  राब सूं हेत
दोपहरयाँ दरखतां तले,
 संज्या बाज्या खेत ॥ (3)

Friday, January 16, 2015

सरपंच चुनाव

गजेन्द्र सिंह शेखावत 
वर्षो का जो मेल जोल था
अब हो रहा मन मुटाव,
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||
जो था एकदम सीधा -साधा
खाने लगा है अब भाव ,
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||
जो न कभी बतियाता था
वो जोड़े हाथ पांव ,
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||
ठन्डे पड़े चौपालों कि
अब है चर्चाओं में ताव,
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||
सदा मौज में रहने वाले
बदले -बदले गांव
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||
पक्ष विपक्ष दो पाले बन गए
राजनीती के दांव
लगता है आ गया,
सरपंच का चुनाव ||