todar mal

Sunday, July 28, 2013

सावण आयो री सखी, मन रौ नाचै मोर

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

सावण आयो री सखी, मन रौ नाचै मोर ।
जल बरसाव बादळी, अगहन लगी चहूं और ।।

झड़ लागी सावण की ,टिप -टिप बरसै मेह
यौवन पाणी भिजतां, तापे सगळी देह ।।

झिर -मिर मेवो बरसता, बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना, छाती धड़का खाय ।।


काली -पीली बादळी, छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सूं चाल री, बरसगो बरजोर ।।

गगन मंडल सूं उतरी, तीजा चारुं मेर।
रेशम -रेशम हुयी धरा, खिलगा जांटी - केर ।।

सावन का झुला पड्या, गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लौट रहया, टाबर ढांढ़ा - ढोर ।।

चित उचटावे बीजळी, पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू" बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।

गुलगला को भोग ल्यो, गोगा करो मैहर।
पाछ सगळा जिमस्यां, थान्को धुप्यो खैर ।।
तीज - सिंझारा,रखपुन्यूं, घेवर रौ घण चाव ।
हिंडा - हिंडू बाग़ में, सजधज करूँ बणाव ।।


Read more: http://www.gyandarpan.com/2013/07/blog-post_28.html#ixzz2aKMvM9Kr


                 http://www.aapanorajasthan.org/index.php


सावन में पूर्णरूप से श्रंगारित उदयपुरवाटी की वादियाँ

चित्र में जलराशी से लबालब कोट बांध
सावन का पवित्र महिना चल रहा है इस समय में उदयपुरवाटी की रूखी सुखी लगने वाली ये पहाड़िया हरीतिमा की चुनर ओढ़े पूर्णरूप से श्रंगारित है ।सावन भादवे के महीने में ये वादियाँ मन को मोह लेती है व् यहाँ बने तीर्थ अपनी और भक्तो को आकृष्ठ करते है ।इस समय में माँ मनसा पीठ ,लोहार्गल,शाकम्भरी माता ,किरोड़ी धाम ,कोट बांध आदि के जलाशय चटानो के सीनों से रिसकर आने वाले शीतल जल से परिपूरित है ।इस सोमवार से शिव भक्त कावडों में पवित्र जल भरकर भोलेनाथ का अभिषेक करेंगे तो कुछ सैर सपाटे के लिए यहाँ की वादियों को निहारने के लिए जाते है ।
भक्तिमय वातावरण से ओतप्रोत इन तीर्थो की सुरम्य उप्यतिकाए सैलानियों की पसंदीदा व् रूह को शुकून देने वाले स्थान रहे है ।

Thursday, July 25, 2013

नीम का पेड़

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

घर के सामने खड़ा वो नीम का पेड़ ।
उसने दी छाया ,और बचाया सूर्य की प्रचंड किरणों से
वह साक्षी रहा हर अछे -बुरे समय का
घर के -आंगन में फेकता था पकी -निमोलियाँ ।
शायद यही उसका ख़ुशी व्यक्त करने का था तरीका ।
तोते -गोरयां ,मोर ,चिडियों की चहचाहट शाम -सुबह को होती ।
उनकी घर आने की ख़ुशी को अपने आंचल में डांप लेता था वह ।
सचमुच कितना दरियादिल था
कभी कुछ नहीं चाहा,जो बना देता रहा ।
यहाँ तक की जाते -...जाते भी अपना मूल्य दे गया था ।

अब उस जगह पर है सूरज की किरणों का डेरा
न पक्षियों का गुंजन ,बस रह गया एक अनजाना सा खालीपन>>>

Thursday, July 11, 2013

सूबेदार ठाकुर पाबुदान सिंह शेखावत का महल.

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

अंग्रेजी हुकूमत के समय सेना में सूबेदार रहे ठाकुर पाबुदान सिंह शेखावत के द्वारा अपने रनिवास के लिए बनवाया हुआ खुबसूरत महल.

यह महल निश्चित ही उस समय में ककराना का सबसे सुंदर भवन रहा था ।बताते है इसके निर्माण के समय में पत्थर के खम्बे,कंगूरे ,आदि को ऊँटों पे लाद कर लाया गया था ।व् ऊपर चढ़ाया गया था ।इसकी चमकदार,मखमली पुताई में प्रुयुक्त चुना -पत्थर को लोडी-सिलावट के ऊपर बहुसंख्य मजदूरो के द्वारा घिसाई करके चिकना बनाया गया था ।महल पर लगे कंगूरे व् रंगीन कांच के रोशनदान दूर से ही महल के आकर्षण को बया करते थे ।ठाकुर पाबुदान सिंह पेंतालिषा के प्रमुख व्यक्तियों में गिने जाते थे ।वे  राजपूत समाज की कुरीतियों के खिलाफ  थे ।उन्होंने उन्हें दूर करने का प्रयत्न किया ।वे परम गो -भक्त थे |

स्वामी विवेकानंद जी और खेतड़ी दरबार अजीत सिंह जी में प्रगाढ़  मित्र थी । स्वामी जी कहा करते थे "हम दोनों एक साथ इस धरा एक दुसरे के पूरवज के रूप में अवतरित हुए है ,इस प्रकार कुछ भी मांगने व् लेने में मुझे कोए संकोच नहीं होता । एक और एक धर्म रक्षक राजा तो दूसरी और एक धर्म रक्षक सन्यासी ।

सूबेदार पाबुदान सिंह की खेतड़ी दरबार से मित्रता रही । अपने रनिवास के लिए बनवाया गया महल में बताते है उनका सहयोग रहा था | गाँव की जोशियो की जोड़ी भी खेतड़ी की ही देन  है । समय के अनुसार गणना  करने से ही निश्चित कर सकते है की वो अजीत सिंह जी का समय था अथवा उनका पूर्ववर्ती काल ।

उन्होंने तत्कालीन समय में समाज में कन्या -भूर्ण जैसी कुरीति के खिलाफ आवाज बुलंद की । अंग्रेजी हुकूमत में भारतीयों का बड़े पद तक पहुचना असंभव था ।परन्तु वह अपनी काबिलियत से सूबेदार के पद तक पहुचे  उन्होंने जीवन में दो विवाह किये । परन्तु कोई संतान नहीं हुयी ।महल में राजदरबार से भेंट स्वरुप प्राप्त हुयी अपार धन सम्पदा ,बहुमूल्य चित्र आदि उनके स्वर्गवास के पश्चात बहुत से हिस्सों में बंट गए । आज समय के साथ साथ उस महामानव का कृतित्व तो धूमिल हो गया लेकिन यह महल आज भी  नाम को यदा -कदा  स्मरण करवा देता है |


Monday, July 8, 2013

पित रंग की चुनर ओढ़े...


 

गजेन्द्र सिंह शेखावत

पित रंग की चुनर ओढ़े, खेत मेरे लहराए
फागुन की मद-मस्त बहार, हुक सी जगाये ||
कुदरत भी रंग बरसाए ,अपने कैनवास से
वृद्ध भी जवां हुआ, मस्त फागुन मास में ।|


कोयल -पपीहा गाए गीत, मधुर मधुमास में
बिरहा का अंतर भी तडफे, पिया मिलन की आस में ।|

चंग-मंजीरे की थापे, गूंजे आधी रात में
देख निहारे गोरी चढ़कर, घर की ड्योढ़ी - छात में ।|


यौवन फिर से दस्तक देता, बूढी जर्जर काया में
मद मस्त हो झूम उठा मन ,गीत प्रेम के गाया में ।|

बच्चों की टोली खेले धोरों पर ,उज्जवल धवल रात में
सब मिलजुलकर एक हो यहाँ ,भूले जात-पांत ने।|


फागुन की सतरंगी सीख, जीवन है जोश ,आशा का
प्रकृति के सौम्य रूप को जानो ,मान करो मूक भाषा का ।|


Read more: http://www.gyandarpan.com/2013/03/blog-post_2.html#ixzz2MReo81O

Thursday, July 4, 2013

सकड़ व् सांचे देवीय अवतार - श्री १००८ सतीबाजी महाराज-

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

घोडा माथे बीराजता, सिद्द करता सब काज ।
पिरथम थारो सुमरण करू,सती -बाजी महाराज ।।

गर्भगृह में ज्योत प्रज्वलन  
ककराना ग्राम के दक्षिण दिशा में दीपपुरा मार्ग पर एक ऊँचे टीले के निचे ढलान भाग पर श्री सती -बाजी महाराज का मंदिर अवस्थित है ।इनके अवतरण के बारे में सुना जाता है वह लगभग २५० वर्ष पूर्व का वह समय रहा होगा । इनके पति का नाम दूल सिंह शेखावत था व् इनका नाम चत्तर कँवर था। विवाह के कुछ समय पश्चात चतर कँवर के पति दूल सिंह का अल्पायु में आकस्मिक निधन हो गया था । पति के अकश्मिक निधन के पश्चात इनमे देवत्व-तेज जाग उठा था।और संसारिक जीवन की क्षण -भंगुरता व् जीवन से निर्लिप्त होकर इनमे सतीत्व का भाव बना था ।
उस काल में अनेकों गाँव-ठिकानो में कुलीन राजपूत स्त्रियों में ईश्वरीय उपासना की प्रगाढ़ता व् परस्पर वैवाहिक संबंधों की मजबूती से पति के स्वर्गवास के पश्चात सती-जती होने के अनेकों उदाहरण इतिहास के सुनहरे पन्नो पर दर्ज है ।राजस्थान के अनेकानेक गाँव -ढाणियों में झुंझार -सती के मंदिर -देवरे इनके प्रमाणों को पुष्ठता प्रदान करते है ।
सती जी का जन्म चुरू जिले के एक गाँव में जन्म हुआ था। यह बिदावत -राठोड राजपूतों की पुत्री थे ।
बाजी ने सती होने से पूर्व बताया की केड गाँव के एक ठाकुर की गर्भवती घोड़ी है ।उस घोड़ी के गर्भ में जिव अंश के रूप में मेरे पति का जीवांश अवस्थित होगा। जिसका ठीक आज से सातवे दिन गर्भपात होगा ।और यहाँ रखी हुयी नीम की दातुन दो भागों में स्वतःही विभक्त हो जाएँगी । तब मेरा विधिवत देवरा धोरे के ऊपर बना कर मेरी मान्यता स्वीकार करना।
बताते है उनके सती होने के बाद सातवें दिन केड ठाकुर की घोड़ी का गर्भपात हुआ ।व् इधर सती वाले स्थान पर रखे हुए दातुन दो फाड़ो में विभक्त हो गए थे ।पीहर पक्ष की आंचलिक भाषा के अनुसार इन्होने अपने देवरे के उपलक्ष में कहा "म्हारो मंदिर धोरा माथे बणावज्यो "।मारवाड़ -बागड़ प्रदेश की तरफ "धोरा" टीले को बोला जाता है जब की शेखावाटी क्षेत्र में कुवे के पानी को क्यारियों में छोड़ने के लिए मिटटी की मेड से बनी हुई छोटी नहर को "धोरा "कहते है ।और उसी समझ के अनुसार पानी के धोरे पर बनवा दिया गया था।जो की बाजी की इच्छा के अनुसार नहीं था ।जिसके फलस्वरूप कुछ समय में ही मंदिर में दरारें आ गयी व् पुराना प्रतीत होने लग गया था । मंदिर का द्वार उत्तरमुखी है व् सामने विशाल सघन वटवृक्ष है ।वही सामने ही जानकी दादी के द्वारा बनवाया हुआ विश्राम गृह है । बाजी के मंदिर के आस पास रियासतकाल में ओरण(भूमि) छोड़ा गया था । मंदिर के आस पास का भूभाग सती वाली ढाणी के नाम से जाना जाता रहा है । सती वाली ढाणी में सैनी परिवार निवास करते है । 
सती -बाजी की मान्यता व् महिमा को शब्दों में पिरोना संभव नहीं है । राजपूत समाज के अलावा अन्य समाजों में भी इनकी मान्यता है । सच्चे मन से स्मरण करने से मनोवांछित कार्य पूर्ण होते है। मंदिर में बाजी की नयनाभिराम मूरत को देखते ही एक अलोकिक दिव्य शक्ति का आभास होता है ।राजपूत परिवारों में किसी भी मंगल कार्य के प्रारंभ से पहले सती जी की महिमा में मधुर गीत महिलाएं कुछ इस प्रकार से गाती है
या माता ककराणा की सकड़ साँची है
या माता बिदावत जी सकड़ साँची है ।।
वही सती जी के श्रृंगार की महिमा में कुछ इस प्रकार से अर्चन करती है
"माता जी न चुडलो सोहे ,जगदम्बा न चुडलो सोहे
चुडल री शोभा न्यारी सा ,थान सींवरा राज भवानी"
सती- बाजी ने सती होने से पूर्व राजपूत समाज में कुछ आण दी थी।उनकी इन वर्जनाओं का आज भी सिद्दत से पालन किया जाता है ।
१.आपके व् वंशजों के द्वारा कभी भी घर -परिवार में "छींके"का प्रयोग नहीं किया जावे ,(पहले लोग अपने कच्चे घरों में खाने-पिने की वस्तुओं को मिटटी के बर्तनों में डालकर खींप के छींके में लटकाकर रखते थे ।)
२.राजपूत महिलाएं बैठने में पीढ़े का इस्तमाल कभी भी नहीं करें ।जैसा की आज भी महिलाये भूमि पर दरी -जाजम बिछाकर कर बैठती है ।
३.महिलाये कभी भी काले पल्लू की ओढ़नी नहीं ओढ़े ।

पुराने समय में सती बाजी के प्रसाद के रूप में मीठा "दलिया" का भोग लगाया जाता था ।प्रतेक शुक्ल पक्ष की द्वादशी (बारस) को राजपूत परिवारों के बड़े-बच्चे धोक के लिए जाते थे।विगत लम्बे समय से जिर्नोदार नहीं होने से मंदिर काफी जीर्ण अवस्था में हो गया था ।अभी 2008 में मंदिर का जीर्णोद्वार श्री महावीर सिंह शेखावत ने करवाया है ।ढाणी में रहने वाले सैनी परिवार सती- बाजी की सुबह शाम मंगल पूजा व् दीपदान मनोयोग से करते है ।राजपूत समाज में विवाहोपरांत नवविवाहित जोड़ों की धोक लगाने सतीजी के अनिवार्य रूप से आते है ।प्रतेक माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी (बारस) को सती -बाजी की ज्योत जलाई जाती है व् प्रसाद चढ़ाया जाता है। दीपावली के पावन त्योंहार पर भी घरों में दीप प्रज्वलन से पूर्व सती -बाजी के दीपक व् ज्योत सामूहिक रूप से जलाई जाती है ।
चरण कमल में बंदना,माथे राखज्यो हाथ ।
शरण पड्या ने अपनायज्यो ,करज्यो माँ कर्तार्थ।।



Category-लोक देवता  

ककराना के भामाशाह




ककराना गाँव में विभिन्न जन सेवार्थ निर्माण कार्य करवाने वाले लोग भी हुए हैं ।जिन्होंने अपने कमाए हुए शुभ धन में से समाज के लिए लगाने का पुनीत कार्य किया है ।कहते है धन की पिपासा कभी भी किसी व्यक्ति की नहीं बुझी है ।अपितु जैसे जैसे बढा है उतनी ही और बलवती हुई है है ।ऐसे में कुछ विरले पुरुष ही होते हैं जो उस धन का मोह त्याग कर समाज हित में सहर्ष दान कर देते हैं ।सुरवीर पुरुष व् दानवीर पुरुषों के समबन्ध में किसी कवि ने ठीक ही कहा है -

पूत जण तो दोय जण, के दाता के शुर ।
नहीं तो रहीजे बाँझड़ी, मति गमाजे नूर ।।

ऐसे भामाशाह पुरुषों का जिक्र जब करते है तो सबसे प्रथम नाम सेठ पन्ना लाल अग्रवाल का आता है ।सेठ पन्ना लाल जी के मन में गाँव के प्रति कितना अपार प्रेम था बताने की आवश्यकता नहीं है ,उनके द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य खुद ब खुद बयां करतें है ।उन्होंने एक के बाद एक शिव मंदिर ,बालिका विद्यालय व् गोपाल जी का मंदिर बनवाकर मात्रभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया ।

१. शिव मंदिर--
सेठ जी सर्वप्रथम गाँव में पशुपति नाथ बाबा का सुंदर मंदिर १९२७ में अपने पिता श्री की यादगार में बनवाया ।यह गाँव का पहला मंदिर था जिसमे संगमरमरी चिप्स पत्थर का प्रयोग हुआ था व् सुंदर फर्श व् स्तंभों से बना है।यह मंदिर गाँव के सबसे पुराने बरगद के पेड़ के निचे बना है ।बताते है इस मंदिर के स्थान पर पहले कुआ था ।इस मंदिर की खासियत यह रही है की यह गाँव के लोगों का पसंदीदा स्थान रहा है ।ग्रीष्म काळ की तपती दोपहरियों में इस के आश्रय में शीतलता का आभास होता है ।जिस के परिणाम स्वरुप यह गाँव का शिमला (cool palace) कहलाता है ।क्या बच्चे ,बड़े ,बुजुर्ग सभी यंहा पनाह लेते है ।ग्रीष्म में विभिन्न ग्रामीण खेल खेलने वालों का यहाँ आन्नद दायक कलरव गूंजता रहता है ।

२.उच्च प्राथमिक बालिका विद्यालय -
सेठ पन्ना लाल जी ने गाँव में बालिकाओं के लिए प्रथक विद्यालय नहीं होने की कमी को महसूस किया ।उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देनेके लिए बालिका स्कूल खोला ।गाँव के उच्च माध्यमिक विद्यालय के सामने सुंदर व् पर्याप्त भवन निर्माण करवा कर अपनी माता श्री नाम से स्कूल गाँव को सौंपा ।उनके द्वारा प्रदत भवन में सरकर ने सरकारी बालिका विद्यालय की मान्यता प्रदान की और उन्हें भामाशाह नागरिक सम्मान से समान्नित किया गया ।

३.गोपाल जी का मंदिर -
गाँव का गोपाल जी का मंदिर जर्जर अवस्था में हो गया था । पन्ना लाल जी ने मंदिर का पुन्रुदार करवाने की मनसा प्रकट की ।और उन्होंने बहुत सुंदर मंदिर को मूर्त रूप देना प्रारंभ कर दिया ।मंदिर के निर्माण में सुंदर संगमरमर पत्थर का प्रयोग किया गया है व् राधा-कृष्ण की आकर्षक मूर्तियाँ स्थापित की गयी है । उनके इस निर्माण में महादेव प्रसाद स्वामी ने भी उनका सहयोग किया था ।

२. ठा. भागीरथ सिंह जी ठुकरानी- इनको पो वाले बाज़ी के नाम से जाना जाता था ।उन्होंने भी अपने संचित धन से धर्मशाला का निर्माण करवाया ।

३.सेठ सुंडा राम -सेठ सुंडा राम ने धर्मार्थ के लिए धर्मशाला का निर्माण करवाया ।जो की गाँव के पुराने स्टैंड पर स्तिथ है ।वर्तमान में सभी धर्मशालाओं में यही सर्वाधिक प्रयोग में ली जाती है ।धर्मशाला में पानी -बिजली का समुचित प्रबंध है ।

४.सेठ गोकुल राम महाजन- सेठ गोकुल राम महाजन ने गाँव की पूर्वी दिशा में धर्मशाला का निर्माण करवाया था।यह धर्मशाला पहले गाँव में विभिन्न शादी समारोह में बारातों के रनिवास के लिए सर्वाधिक पर्योग होती थी ।इस धर्मशाला के सामने प्रयाप्त खुला स्थान है ।व् पहले इसमें जल श्रोत के रूप में एक कुई भी थी ।जिससे पानी की समुचित व्यवस्था रहती थी ।वर्तमान में इसमें एक निजी स्कूल संचालित हो रही है ।