todar mal

Thursday, February 28, 2013

पहाड़ी पर अनचाहे उगे कीकर के पेड़
गाँव के झाड़ीनुमा पेड़ 

कैर या करीर या केरिया या कैरिया एक मध्यम या छोटे आकार का पेड़ है। यह पेड़ ५ मीटर से बड़ा प्राय: नहीं पाया जाता है। यह प्राय: सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। थार के मरुस्थल में मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप में मिलता है। इसमें दो बार फ़ल लगते हैं: मई और अक्टूबर में। इसके हरे फ़लों का प्रयोग सब्जी और आचार बनाने में किया जाता है। इसके सब्जी और आचार अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं. पके लाल रंग के फ़ल खाने के काम आते हैं। हरे फ़ल को सुखाकर उनक उपयोग कढी बनाने में किया जता है।सूखे कैर फ़ल के चूर्ण को नमक के साथ लेने पर तत्काल पेट दर्द में आराम पहुंचाता है।


कैर की झाडिया मारवाड़,चुरू,फतेहपुर क्षेत्र में अधिकाश रूप में इनकी झाडिया पाई जाती है ।जो की दूर दूर तक जंगलों में पसरी हुई है । कैर के वृक्ष अपने क्षेत्र में बहुत कम मात्रा में है।थोड़े बहुत वृक्ष गाँव की पहाड़ी पर थे ।उनको भी लोगों ने कट- पिट कर बराबर कर दिया ।कुछ साल पहले तक पहाड़ी बिलकुल वृक्ष विहीन थी ।एक्का दूका जाल के पेड व् कैर के पेड थे ।


मीठे बेरों की झाड़ियाँ भी इस क्षेत्र में प्रयाप्त रूप से है ।जिनके लगने वाले बेर बड़े आकार के होते है ।गाँव की पहाड़ी की तलहटी के आस -पास ये झाडिया बहुत संख्या में थी ।जिनके बेर तत्कालीन समय में बच्चे छुटीयों में चाव से खाते थे ।
कुछ समय से बिलायती बबूल(कीकर) ने गाँव की पहाड़ी व् गाँव में पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया है ।शुरू में लोगों ने इनको सलीके व् हिफाजत से लगाना प्रारंभ किया। इनकी बटवार बनाकर पानी भी डालते थे ।और अब स्तथी ये है की ये लोगों के जीव का जंजाल बन गया है । इसके पेड़ को न तो आसानी से काटा जा सकता है और न ही ख़त्म किया जा सकता है ।यहाँ तक की घासलेट से जलाने के उपरांत भी अंकुरण फुट आता है

प्रजावत्सल महाराजा गंगा सिंह जी बीकानेर ने राजस्थान की वृक्ष विहीन धरती को देख कर यहाँ पर पेड़ लगाने के लिए विचार किया परन्तु यहाँ के जलवायु व् पानी की कमी के कारन किसी भी वनस्पति को लगाना संभव नहीं था ।तब महाराजा गंगा सिंह विलायत से इस वृक्ष को लेकर आये ।ताकि मरुभूमि में हरियाली पनप सके । इस वृक्ष की खासियत है की ये तमाम विषम व् प्रतिकूल परिस्तिथि में भी पनप सकता है ।

आज स्तिथि ये है के ये बबूल(कीकर) के पेड़ गाँव की पहाड़ी ,खाली पड़े भूखंड,सार्वजनिक स्थानों ,निर्जन घरों हर जगह फेल गए है ।और गाँव के स्वरुप को पूरी तरह से बबुलमय कर दिया है ।

Saturday, February 16, 2013

राजस्थान की कुछ सटीक व् मजेदार कहावतें -




1.अभागियो टाबर त्युंहार नै रूसै
अर्थ -भाग्यहीन बालक त्यौहार  के दिन रुष्ट होता है ।

2.अय्याँ ही रांडा रोळा करसी अर अय्याँ ही पावणा जिमबो करसी
अर्थ -जलने वाले ऐसे ही जलते रहेंगे ।

3.आसोजां का पड्या तावडा जोगी बणग्या जाट
अर्थ -असोज के महीने में अगर तेज धुप पड़ती है तो किसान की बर्बादी निश्चित है ।

4.तीजां पाछै तीजड़ी, होळी पाछै ढूंढ, फेरां पाछै चुनड़ी, मार खसम कै मूंड ।
अर्थ -समय निकलने के बाद उस वस्तु उपलब्द होना बेकार है ।

5.च्यार चोर चौरासी बाणिया, बाणिया बापड़ा के करँ ।
अर्थ -अनउपयुक्त  व्यक्ति की संख्या  चाहे कितने भी हो वो कुछ नहीं कर सकते ।

6.ठिकाणे सुं ही ठाकर बाजे ।
अर्थ -व्यक्ति का नहीं स्थान का महत्व होता है ।


categeory-कहावतें 

Wednesday, February 6, 2013

ककराना की मुकुट मणि-मोर पापड़ा और श्रधेय 1008 श्री हरीदासजी महाराज


गजेन्द्र सिंह शेखावत 

ककराना गाँव को दूर से देखते है तो ये तो ये मोर पापड़ा हमें अपने गाँव का सूचक चिन्ह के रूप में आभास करा देता है । गाँव की पहाड़ी के उप्पर सजी कुछ चटाने मुकुट के समान द्रष्टि गोचर  होती है  इन्ही चटानो के ऊपर एक आयताकार चटान्न है यही है "मोर पापड़ा"
मोर पापड़ा पुराने समय से ही काफी चर्चा में रहा है ।बताते है पहले सुबह -शाम के वक्त इस पर मोर आपने पंखों को फैलाकर नृत्य करते थे ।जिसका द्रश्य बड़ा ही सुंदर होता था । और उसीआधार पर इसका नाम मोर पापड़ा पड़ा ।
इसी चटान्न  से एक कथा और जुडी हुई है एक समय भयंकर आकाल पड़ा । बिना वर्षा के चारों तरफ त्राहि -त्राहि मच गयी ।ग्रामीण लोग रोज बादलों की और तकते और भगवन इन्द्र को रोज मनाते । उस समय हमारे गाँव के सिद्ध संत श्री हरी दास जी महाराज से  गाँव की दशा देखि नहीं गयी । कहते है संत  और शुरवीर  मानव मात्र की भलाई के लिए  ही जन्म लेते है । हरी दास जी महाराज का  संत ह्रदय पिंघल गया ।

उन्होंने कसम खायी की जब तक वर्षा नहीं होगी तब तक वह इस "मोर पापड़ा " से निचे नहीं उतरेंगे ।व् एक पैर पर खड़े होकर तपस्या करेंगे ।
इतना कहकर वो इशी मोर- पापड़ा पर खड़े हो गए ।कई सवेरे हुए व् वीरान रातें गुजरी ।परन्तु श्री हरी दास जी महाराज अपनी भीष्म -प्रतिज्ञा के साथ अटल खड़े रहे ।
आखिरकार एक एक सप्ताह की कड़ी साधना के बाद इन्दर देव प्रसन्न हुए ।रिमझिम बारिश की झड़ी लग गयी ।जो की अगले तीन से चार रोज  तक जारी रही ।गाँव में खुशियों की सोरभ  फ़ैल गयी । "हरी दास जी महाराज की जय " से गाँव गूंज उठा ।
गाँव वाले ख़ुशी से नाचते हुए "मोर पापड़ा "पर पहुँच गए व्  हरी दास जी महाराज को ससम्मान निचे उतार कर लाये ।
उलेखनिये है की हरी दास जी का सांसारिक नाम रिछपाल सिंह शेखावत था ।उन्होंने  ठाकुर अगर सिंह के घर ककराना में जन्म लिया ।बचपन में ही उनकी सांसारिक जीवन से विरक्ति हो गयी । उन्होंने भगवन कृष्ण की सगुण भक्ति की ।मकराना के पास देवली नमक गाँव में उन्होंने आश्रम बनाया व् अपनी नस्वर देह त्यागी ।प्रतिवर्ष देवली में उनके निर्वाण दिवस पर भंडारा लगता है व् हजारों की तादाद में श्रद्धालु धोक लगते है ।

                                                                                                                           


Categeory-धर्म -संत महात्मा