गजेन्द्र सिंह शेखावत
घर के सामने खड़ा वो नीम का पेड़ ।
उसने दी छाया ,और बचाया सूर्य की प्रचंड किरणों से
वह साक्षी रहा हर अछे -बुरे समय का
घर के -आंगन में फेकता था पकी -निमोलियाँ ।
शायद यही उसका ख़ुशी व्यक्त करने का था तरीका ।
तोते -गोरयां ,मोर ,चिडियों की चहचाहट शाम -सुबह को होती ।
उनकी घर आने की ख़ुशी को अपने आंचल में डांप लेता था वह ।
सचमुच कितना दरियादिल था
कभी कुछ नहीं चाहा,जो बना देता रहा ।
यहाँ तक की जाते -...जाते भी अपना मूल्य दे गया था ।
अब उस जगह पर है सूरज की किरणों का डेरा
न पक्षियों का गुंजन ,बस रह गया एक अनजाना सा खालीपन>>>
घर के सामने खड़ा वो नीम का पेड़ ।
उसने दी छाया ,और बचाया सूर्य की प्रचंड किरणों से
वह साक्षी रहा हर अछे -बुरे समय का
घर के -आंगन में फेकता था पकी -निमोलियाँ ।
शायद यही उसका ख़ुशी व्यक्त करने का था तरीका ।
तोते -गोरयां ,मोर ,चिडियों की चहचाहट शाम -सुबह को होती ।
उनकी घर आने की ख़ुशी को अपने आंचल में डांप लेता था वह ।
सचमुच कितना दरियादिल था
कभी कुछ नहीं चाहा,जो बना देता रहा ।
यहाँ तक की जाते -...जाते भी अपना मूल्य दे गया था ।
अब उस जगह पर है सूरज की किरणों का डेरा
न पक्षियों का गुंजन ,बस रह गया एक अनजाना सा खालीपन>>>
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