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Saturday, July 25, 2015

ककराना सुयश>

गजेन्द्र सिंह शेखावत 
डूंगर, टीबा ,नदी नाखळा 
गुणी , नळौ और,घाटी । 
खेड़ा , बाढ़ ,नाम खेतका,
कोई बंधो -कोई फांटी ॥ (1)

नर नाहर सदा निपजति
उर्वर महकती माटी
जगां -जगां बरगद की छाया,
खेत खेत म जांटी ॥(2)

पील पीमसयाँ ,अमरुद घणेरा
शहतूता और बेर
सांगरिया की लड़या निपजे ,
खीप खींपोळी केर ॥ (3)

डाब,दचाब , घास मोकळो
झेरण -भरूठ्यो , साठी
भरोट्यां लोग -लुगायां ल्याव ,
दिन उगी भाग फाटी ||(4)

कठे- पुराणो छपर झांक
कठे छान की टाटी
रेवड़ वाला सोवे निरभै ,
जुड़ कुवाडी झाठी ||(5)

भेड़ बकरियाँ ऊंट लरजता
देशी कुम्भी राठी
रोट बाजरा का सियाले
छठ -चौमासे बाटी ॥ (6

खिचड़ला का लागीं सबड़का
सक्कर घी की चांठी ।
मांगी मिलयाँ भी अमृत ला ग
छाछ गांव की खाटी ॥(7)

टाबर- टीकर स्कूलां जावे ,
ले हाथां बरता -पाटी |
शहर-परदेशा जावन हाला ,
चढ़ गाडी जा घाटी ॥(8)

प्रेम प्यार सूं रेवनहाला
ना झगड़ा ना लाठी ।
कितरो करा बखान इणरो,
आ मूँगा सूं मोती माटी ॥ (9)