गजेन्द्र सिंह शेखावत
मेल-बिछोह परसपर दोनूं है जीवन का खेल।
बड़ो मजो यात्रामें आतो ,जद जाता रेलमपेल।।
तीन मील की विकट चढ़ाई , झरना को कळ -कळ कौल ।
बीच राह में मिले जातरी ,जय माता दी बोल ।|
बीच राह में मिले जातरी ,जय माता दी बोल ।|
कोई लूण का मुठा लयातो कोई आटों और तेल
कोई पैसा को हिस्सों देतो ,कोई हो ज्यातो गेल ॥
कोई पैसा को हिस्सों देतो ,कोई हो ज्यातो गेल ॥
बरसां का मिलबा का वादा, यारी टीस जगाती।
सावण को मतवालो मौसम, बाळपणै रा साथी ।
सावण को मतवालो मौसम, बाळपणै रा साथी ।
कुंडा की चादर में न्हाता ,उची छलांग लगाता
डाहढा की निझर को पाणी दाल चुरमो बणाता ।
डाहढा की निझर को पाणी दाल चुरमो बणाता ।
परबत का अंतस सु झरतो मिठो मधरो पाणी |
मुसळ का लागी धमडका , नौपत बाज ज्याणी ॥
मुसळ का लागी धमडका , नौपत बाज ज्याणी ॥
कुदरत का निजारां बी च,छक र लेता जीम ण
स्याणा,भोला सब मेल का ,और बिगड़ेड़ा तीवण ॥
स्याणा,भोला सब मेल का ,और बिगड़ेड़ा तीवण ॥
दुर्गम भयानक परवत बी च माता की सकलाई
अंगुल सदृश मनसा माता ,मन म घणी है समाई ॥
अंगुल सदृश मनसा माता ,मन म घणी है समाई ॥