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Saturday, October 26, 2013

चुनावी समर

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

बज उठी दुन्दुभिया,हो गया एलान लोकशाही समर का
धूर्त शकुनियो ने कस  लिया कमरबंध अपनी कमर का ।

सावधान  । निर्लज्ज आयेगा बस्ती में भिखारी बनकर ।
निसंकोच करेगा आलाप , वह मंच पर तनकर |

 जादूगरी दिखायेगा शब्दों की गलियों नुक्कड़ कुचों पर
भीड़ में इन्सान नहीं वोट गिने जायेंगे और नजर होगी मतदान बूथों पर |

भावनायो ,सूरा के पैमानों से बहकाएंगे,तीर तरकश में होंगे अनेक
क्षेत्र ,ढाणी,गाँव ,जाति,धर्म  के अनुपात को देखकर देंगे उन्हें फेंक |

कौन पूछे गा उनसे की विकाश का मुह किधर है?
भूखा नंगा भारत फुटपाथ पर देखो इधर है  |

पूंजीपति-भ्रष्ट ,मुनाफाखोर,कालाबाजारियों की बनाते तुम कोठिया
सर्वहारा वर्ग के पेट से दूर मत करो  दो जून की रोटिया  ||