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Thursday, July 11, 2013

सूबेदार ठाकुर पाबुदान सिंह शेखावत का महल.

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

अंग्रेजी हुकूमत के समय सेना में सूबेदार रहे ठाकुर पाबुदान सिंह शेखावत के द्वारा अपने रनिवास के लिए बनवाया हुआ खुबसूरत महल.

यह महल निश्चित ही उस समय में ककराना का सबसे सुंदर भवन रहा था ।बताते है इसके निर्माण के समय में पत्थर के खम्बे,कंगूरे ,आदि को ऊँटों पे लाद कर लाया गया था ।व् ऊपर चढ़ाया गया था ।इसकी चमकदार,मखमली पुताई में प्रुयुक्त चुना -पत्थर को लोडी-सिलावट के ऊपर बहुसंख्य मजदूरो के द्वारा घिसाई करके चिकना बनाया गया था ।महल पर लगे कंगूरे व् रंगीन कांच के रोशनदान दूर से ही महल के आकर्षण को बया करते थे ।ठाकुर पाबुदान सिंह पेंतालिषा के प्रमुख व्यक्तियों में गिने जाते थे ।वे  राजपूत समाज की कुरीतियों के खिलाफ  थे ।उन्होंने उन्हें दूर करने का प्रयत्न किया ।वे परम गो -भक्त थे |

स्वामी विवेकानंद जी और खेतड़ी दरबार अजीत सिंह जी में प्रगाढ़  मित्र थी । स्वामी जी कहा करते थे "हम दोनों एक साथ इस धरा एक दुसरे के पूरवज के रूप में अवतरित हुए है ,इस प्रकार कुछ भी मांगने व् लेने में मुझे कोए संकोच नहीं होता । एक और एक धर्म रक्षक राजा तो दूसरी और एक धर्म रक्षक सन्यासी ।

सूबेदार पाबुदान सिंह की खेतड़ी दरबार से मित्रता रही । अपने रनिवास के लिए बनवाया गया महल में बताते है उनका सहयोग रहा था | गाँव की जोशियो की जोड़ी भी खेतड़ी की ही देन  है । समय के अनुसार गणना  करने से ही निश्चित कर सकते है की वो अजीत सिंह जी का समय था अथवा उनका पूर्ववर्ती काल ।

उन्होंने तत्कालीन समय में समाज में कन्या -भूर्ण जैसी कुरीति के खिलाफ आवाज बुलंद की । अंग्रेजी हुकूमत में भारतीयों का बड़े पद तक पहुचना असंभव था ।परन्तु वह अपनी काबिलियत से सूबेदार के पद तक पहुचे  उन्होंने जीवन में दो विवाह किये । परन्तु कोई संतान नहीं हुयी ।महल में राजदरबार से भेंट स्वरुप प्राप्त हुयी अपार धन सम्पदा ,बहुमूल्य चित्र आदि उनके स्वर्गवास के पश्चात बहुत से हिस्सों में बंट गए । आज समय के साथ साथ उस महामानव का कृतित्व तो धूमिल हो गया लेकिन यह महल आज भी  नाम को यदा -कदा  स्मरण करवा देता है |


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