todar mal

Saturday, March 2, 2013


रुपगो होली को डाँडो 


पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार २५ फ़रवरी को होली का डंडा रोपा गया। इसके साथ ही मांगलिक कार्यों पर भी विराम लग गया। मंगलवार से फागुन माह की शुरुआत हो गयी है ।पौराणिक मान्यता के अनुसार माघ पूर्णिमा से फाल्गुन पूर्णिमा तक सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं। बदले सामाजिक स्वरूप में होली से आठ दिन पहले 19 मार्च से 26 मार्च तक होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य बाधित रहेंगे। होलिका दहन 26 मार्च को होगा, वहीं 27 मार्च को धुलंडी का त्योहार मनाया जाएगा।

बदलते दौर में फाल्गुनी महक कम हो गयी है ।पहले डंडा रोपण के साथ ही होली की शुरुवात हो जाती थी ।हंसी -ठिठोली व् मजाकिया गालीबाजी के दौर चलते थे। कुम्हार समाज के लोग अपनी नृत्य स्टाइल ,व्से स्वांग बाजी से लोगों का मनोरंजन करते थे । देर रात्रि तक सुहानी रातों में गाँव व् आस -पास की ढाणियों में चंग -धमाल की स्वर लहरिया मन को आकृष्ठ करती थी |हमारी कृषि आधारित व्यवस्था से त्यौहार भी पूरी तरह से जुड़े हुए है ।रवि की फसल के पकने पर उल्लास व् मस्ती का मन किसान का हो जाता था ।
किन्तु अब सब बदल गया है! अब तो गांवों में भी होलियां अलग-अलग जलने लगी हैं। लोकगीतों और लोकनृत्यों की जगह अश्लील कानफोडू गाने व भद्दे नृत्य होली की पहचान बनते जा रहे हैं।

अब नवयुवकों को लगता है, लोकगीतों और लोकनृत्यों से जुड़े रहना पिछड़ापन है। अत: शहरी बनने की होड़ में वे एक अपसंस्कृति को पोषित कर रहे हैं।

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