गजेन्द्र सिंह शेखावत
ककराना गाँव की शिक्षा के प्रति जागरूकता प्रारंभ से ही रही है ।हमारे अभिभावकों ने स्कूल के कार्यकलाप में शुरू से ही रूचि दिखाई ।जिसकी बदोलत यहाँ पर आने वाला स्टाफ भी गाँव की प्रशंशा करके गया है ।गाँव के लोगों ने रास्ट्रीय पर्वों के अवसर स्कूल के कार्यकर्मों में उत्साहित होकर भाग लिया है ।व् यहाँ की समस्याओं को दूर करने का यथायोग्य प्रयास भी किया है।
आस -पास के गाँव दीपुरा , पदेवा,दलेलपुरा,माधोगढ,मैनपुरा, गढ़ला, आदि की पसंदीदा स्कूल हमेशा ककराना की रही है ।इन गाँव के अभिभावकों ने अपने बच्चों को इस शांति प्रिय व् अनुशाषित गाँव में प्राथमिकता से भेजा है ।
अब ५-६ सालों से शिक्षा का बाजारीकरण व् अंग्रेजी माद्यम के निजी स्कूल शहरों की तर्ज पर बनने से निजी स्चूलों में पढाना स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है ।
वही दूसरी और सरकारी अध्यापक भी अकर्मण्य बन गए है ।उनका भी स्कूल आना सिर्फ उपस्थिति दर्ज करवाना मकसद भर है ।नए -नए युवा आरक्षण की बैशाखी के सहारे इस पेशे में आ तो गए ।लेकिन शिक्षा के प्रति समर्पण भाव उनमे नहीं है ।फेसनेबल लिबास में आना व् जैसे -तैसे समय व्यतीत करके "फट-फटी" पर बैठकर निकल जाना ही बस उनका शिक्षक धर्म है ।उनके आचार -विचारों से शिक्षक की गरिमा कहीं भी द्रष्टिगोचर नहीं होती है ।
किसी समय में ककराना की माद्यमिक स्कूल में प्रवेस पाना प्राथमिकता होती थी । गाँव वालों के अथक प्रयास से सन १९९० में यहाँ पर सरकर ने मेट्रिक परीक्षा का बोर्ड सेंटर बनाया ।उससे पहले मेट्रिक की परीक्षा देने विभिन्न गाँवों में केन्द्रों पर जाकर देना होता था ।जिससे विद्यार्थियों को बहुत असुविधों का सामना करना पड़ता था ।
उस समय गाँव के बड़े -बुजुर्ग लोग स्कूल के आस -पास परीक्षा के दौरान बैठे रहते थे ।जिससे किसी प्रकार की अवांछित गतिविधि नहीं हो ।
अब चूँकि स्कूल उच्च माध्यमिक में कर्मोंनत हो चुकी है ।काफी नए भवनों का निर्माण भी हो चूका है ।
जहाँ तक मुझे जानकारी है कुछ शिक्षक जिन्हें आज भी याद किया जाता है -
१.मास्टर देवी सिंह - यह बहुत ही सख्त स्वाभाव के मास्टर थे ।इनका तत्कालीन बच्चों में बहुत खौफ था ।सबक याद नहीं करने की स्तथी में ये उल्टा तक लटका देते थे ,व् बेंत से सुताई भी बहुत जबरदस्त करते थे । सुद्रढ़ कद काठी के धनी मास्टर जी के समय में अनुशाशन सर्वोपरि था ।कहते है बिना भय के विद्या नहीं आती है ।उसके लिए विद्यार्थी में शिक्षक का भय होना जरुरी है ।
"छड़ी पड़े छन-छन ,विद्या आवे घन -घन "
इनके सानिध्य में पढ़े हुई लोग आज भी इनको श्रधा से याद करते है ।
इन्होने आजादी की लड़ाई में नेताजी के साथ " आजाद हिन्द फौज" में अवेतनिक देश के लिए अपनी सेवा दी । नेताजी के साथ रंगून में ४-५ सालों तक अद्रस्य रहे । इन्होने २५-३० वर्ष तक ककराना में समर्पित भाव से सेवा दी ।इन्होने अध्यापन के साथ -साथ गाँव का डाक विभाग का काम भी संभाला ।तत्कालीन समय के प्रेमभाव कारण हमारे यहाँ अक्षर मिलने आते रहते है ।
२. मास्टर नेकी राम जी- ये भी अच्छे अध्यापक रहे ।
३.मास्टर गणपत लाल वर्मा-यह प्रधाना अध्यापक थे । ये स्वभाव से सोम्य व् म्रदुभाशी थे ।इनका गाँव के प्रति बहुत लगाव था । पहला ऐसा अध्यापक देखा जो स्वयं के विदाई समारोह के भाव -विहल क्षणों में रो पड़ा था ।
4.मास्टर श्रधा राम यादव -यह सीधे - साधे व् सरल स्वभाव के अध्यापक थे ।परन्तु संस्कृत के परम ज्ञाता थे ।हमारे प्रति इनका भी विशेष अनुराग था ।
5.मास्टर रणजीत सिंह-ये एक व्यवस्थित व् अनुशाशन प्रिय प्रधाना अध्यापक थे । रात्रिकालीन डोर टू डोर विद्यार्थियों का निरिक्षण करना व् अभिभावकों से मिलना इनका हर ग्रामवासी को अच्छा लगा । इन्होने भी अपने छोटे से कार्यकाल में गाँव में अपनी अच्छी छवि बनायीं ।
6.मास्टर दिलबाग सिंह-मास्टर दिलबाग सिंह- एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व , अंग्रेजी के अध्यापक व् स्कूल समय में अपने कर्तव्य के प्रति जवाबदार दबंग अध्यापक ।इनका भी बड़ा खौफ था ।
इन्होने गाँव की संस्कृति में अपने आप को पूर्णतया ढाल कर रखा ।एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये ।इनके प्रति भी हमारा विशेष अनुराग रहा ।विगत २-३ साल पहले इनका देहावसान हो गया था ।
7.मास्टर सत्यरूप सिंह- सामाजिक विज्ञानं के बहुत मंजे हुए अध्यापक ,विनोदप्रिय स्वभाव ।विषय को पॉइंट टू पॉइंट समझाने की अद्भुद कला
8.मास्टर सुमेर सिंह- ये प्रधानाध्यापक थे ।इन्होने भी स्कूल के स्टाफ व् अनुसाशन को व्यवस्थित रखा ।
इनमे से देवी सिंह ,श्रधा राम जी ,दिलबाग सिंह आदि को हमने करीब से जाना है ।
9.मास्टर केदारमल स्वामी -यह अंग्रेजी के अध्यापक रहे ।इनकी पढ़ाने की शैली बहुत सुंदर थी ।ये विद्यार्थियों के साथ हमेशा मित्रवत रहे ।अब सेवानिवर्ती के बाद गाँव के विभिन्न सामाजिक मुद्दों को सुलह करवाने के सामाजिक दायित्व को निभाते है व् विकास परक मुद्दों पर विचार रखते है ।
10.मास्टर रामकुमार मीणा - गाँव की स्कूल में काफी समय तक अध्यापक रहे । मुख्य रूप से सांस्क्रतिक प्रभारी रहे ।स्पीच के मामले में इनका कोई सानी नहीं रहा ।माइक पर एक अपनी विशिस्ट शैली से ये गाँव की आवाज बन गए ।समय समय पर इन्होने गाँव के विकास के मुद्दे उठाये ।विगत कुछ सालों से अंग -प्रत्यंग के काम नहीं करने के बावजूद भी आत्मविश्वास अभी भी गजब का है ।
ककराना गाँव की शिक्षा के प्रति जागरूकता प्रारंभ से ही रही है ।हमारे अभिभावकों ने स्कूल के कार्यकलाप में शुरू से ही रूचि दिखाई ।जिसकी बदोलत यहाँ पर आने वाला स्टाफ भी गाँव की प्रशंशा करके गया है ।गाँव के लोगों ने रास्ट्रीय पर्वों के अवसर स्कूल के कार्यकर्मों में उत्साहित होकर भाग लिया है ।व् यहाँ की समस्याओं को दूर करने का यथायोग्य प्रयास भी किया है।
आस -पास के गाँव दीपुरा , पदेवा,दलेलपुरा,माधोगढ,मैनपुरा,
अब ५-६ सालों से शिक्षा का बाजारीकरण व् अंग्रेजी माद्यम के निजी स्कूल शहरों की तर्ज पर बनने से निजी स्चूलों में पढाना स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है ।
वही दूसरी और सरकारी अध्यापक भी अकर्मण्य बन गए है ।उनका भी स्कूल आना सिर्फ उपस्थिति दर्ज करवाना मकसद भर है ।नए -नए युवा आरक्षण की बैशाखी के सहारे इस पेशे में आ तो गए ।लेकिन शिक्षा के प्रति समर्पण भाव उनमे नहीं है ।फेसनेबल लिबास में आना व् जैसे -तैसे समय व्यतीत करके "फट-फटी" पर बैठकर निकल जाना ही बस उनका शिक्षक धर्म है ।उनके आचार -विचारों से शिक्षक की गरिमा कहीं भी द्रष्टिगोचर नहीं होती है ।
किसी समय में ककराना की माद्यमिक स्कूल में प्रवेस पाना प्राथमिकता होती थी । गाँव वालों के अथक प्रयास से सन १९९० में यहाँ पर सरकर ने मेट्रिक परीक्षा का बोर्ड सेंटर बनाया ।उससे पहले मेट्रिक की परीक्षा देने विभिन्न गाँवों में केन्द्रों पर जाकर देना होता था ।जिससे विद्यार्थियों को बहुत असुविधों का सामना करना पड़ता था ।
उस समय गाँव के बड़े -बुजुर्ग लोग स्कूल के आस -पास परीक्षा के दौरान बैठे रहते थे ।जिससे किसी प्रकार की अवांछित गतिविधि नहीं हो ।
अब चूँकि स्कूल उच्च माध्यमिक में कर्मोंनत हो चुकी है ।काफी नए भवनों का निर्माण भी हो चूका है ।
जहाँ तक मुझे जानकारी है कुछ शिक्षक जिन्हें आज भी याद किया जाता है -
१.मास्टर देवी सिंह - यह बहुत ही सख्त स्वाभाव के मास्टर थे ।इनका तत्कालीन बच्चों में बहुत खौफ था ।सबक याद नहीं करने की स्तथी में ये उल्टा तक लटका देते थे ,व् बेंत से सुताई भी बहुत जबरदस्त करते थे । सुद्रढ़ कद काठी के धनी मास्टर जी के समय में अनुशाशन सर्वोपरि था ।कहते है बिना भय के विद्या नहीं आती है ।उसके लिए विद्यार्थी में शिक्षक का भय होना जरुरी है ।
"छड़ी पड़े छन-छन ,विद्या आवे घन -घन "
इनके सानिध्य में पढ़े हुई लोग आज भी इनको श्रधा से याद करते है ।
इन्होने आजादी की लड़ाई में नेताजी के साथ " आजाद हिन्द फौज" में अवेतनिक देश के लिए अपनी सेवा दी । नेताजी के साथ रंगून में ४-५ सालों तक अद्रस्य रहे । इन्होने २५-३० वर्ष तक ककराना में समर्पित भाव से सेवा दी ।इन्होने अध्यापन के साथ -साथ गाँव का डाक विभाग का काम भी संभाला ।तत्कालीन समय के प्रेमभाव कारण हमारे यहाँ अक्षर मिलने आते रहते है ।
२. मास्टर नेकी राम जी- ये भी अच्छे अध्यापक रहे ।
३.मास्टर गणपत लाल वर्मा-यह प्रधाना अध्यापक थे । ये स्वभाव से सोम्य व् म्रदुभाशी थे ।इनका गाँव के प्रति बहुत लगाव था । पहला ऐसा अध्यापक देखा जो स्वयं के विदाई समारोह के भाव -विहल क्षणों में रो पड़ा था ।
4.मास्टर श्रधा राम यादव -यह सीधे - साधे व् सरल स्वभाव के अध्यापक थे ।परन्तु संस्कृत के परम ज्ञाता थे ।हमारे प्रति इनका भी विशेष अनुराग था ।
5.मास्टर रणजीत सिंह-ये एक व्यवस्थित व् अनुशाशन प्रिय प्रधाना अध्यापक थे । रात्रिकालीन डोर टू डोर विद्यार्थियों का निरिक्षण करना व् अभिभावकों से मिलना इनका हर ग्रामवासी को अच्छा लगा । इन्होने भी अपने छोटे से कार्यकाल में गाँव में अपनी अच्छी छवि बनायीं ।
6.मास्टर दिलबाग सिंह-मास्टर दिलबाग सिंह- एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व , अंग्रेजी के अध्यापक व् स्कूल समय में अपने कर्तव्य के प्रति जवाबदार दबंग अध्यापक ।इनका भी बड़ा खौफ था ।
इन्होने गाँव की संस्कृति में अपने आप को पूर्णतया ढाल कर रखा ।एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये ।इनके प्रति भी हमारा विशेष अनुराग रहा ।विगत २-३ साल पहले इनका देहावसान हो गया था ।
7.मास्टर सत्यरूप सिंह- सामाजिक विज्ञानं के बहुत मंजे हुए अध्यापक ,विनोदप्रिय स्वभाव ।विषय को पॉइंट टू पॉइंट समझाने की अद्भुद कला
8.मास्टर सुमेर सिंह- ये प्रधानाध्यापक थे ।इन्होने भी स्कूल के स्टाफ व् अनुसाशन को व्यवस्थित रखा ।
इनमे से देवी सिंह ,श्रधा राम जी ,दिलबाग सिंह आदि को हमने करीब से जाना है ।
9.मास्टर केदारमल स्वामी -यह अंग्रेजी के अध्यापक रहे ।इनकी पढ़ाने की शैली बहुत सुंदर थी ।ये विद्यार्थियों के साथ हमेशा मित्रवत रहे ।अब सेवानिवर्ती के बाद गाँव के विभिन्न सामाजिक मुद्दों को सुलह करवाने के सामाजिक दायित्व को निभाते है व् विकास परक मुद्दों पर विचार रखते है ।
10.मास्टर रामकुमार मीणा - गाँव की स्कूल में काफी समय तक अध्यापक रहे । मुख्य रूप से सांस्क्रतिक प्रभारी रहे ।स्पीच के मामले में इनका कोई सानी नहीं रहा ।माइक पर एक अपनी विशिस्ट शैली से ये गाँव की आवाज बन गए ।समय समय पर इन्होने गाँव के विकास के मुद्दे उठाये ।विगत कुछ सालों से अंग -प्रत्यंग के काम नहीं करने के बावजूद भी आत्मविश्वास अभी भी गजब का है ।
No comments:
Post a Comment