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Tuesday, October 20, 2015

दशानन

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

भीमकाय शस्त्रों से सुसज्जित बारूद के शोर में ।
दशानन का दहन होगा, है हल्ला चहुँ और में ।
भीड़ का उत्साह कोलाहल डब- डब छलक रहा था
सतरंगी रोशनी में खड़ा दीप्त, भयानक दहक रहा था ।
रावण की दशों भुजाये शस्त्रोजित और अट्ठास करता मुंड
शायद उसकी मनो दशा से, अनभिज्ञ था  उपस्थित झुण्ड ।
मानो कह रहा था असुर मैं कल भी था आज भी हू
हर रोज हूँ, नित्य हूँ सर्वज्ञ व् सर्वव्यापक हूँ ।
मरते नहीं दैत्य कभी मूर्खों, कुछ यूँ गरजा तब लंकेश
और भीड में से मेरे असंख्य, पहले पहचानों तुम वेश ।
राम की मर्यादा ,शील सीता का, किस -किस में है कहो
अगर नहीं उत्तर है तो फिर , पुतले यूँ ही जलाते रहो ।।





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