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Friday, April 26, 2013

शेखावाटी की भागीरथी - काटली नदी



गजेन्द्र सिंह शेखावत

काटली नदी राजस्थान के सीकर ज़िले के खंडेला की पहाड़ियों से निकलती है। यह एक मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर प्रवाहित होती है। नदी उत्तर में सीकर व झुंझुनू में लगभग 100 किलोमीटर बहने के उपरांत चुरू ज़िले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।
विगत १७-१८ सालों में जिस प्रकार से बारिश का पैमाना साल दर साल कम होता गया है ।वर्षा से पूरित जल श्रोत धीरे - धीरे सूखने लग गए ।सन १९९३-९३ में अंतिम अच्छी बारिश हुई थी ।उस समय वर्षा की झड़ी लगा करती थी ।झड़ी के रूप में होने वाली वर्षा ही भूमि की प्यास को पूरी तरह से मिटा पाती थी ।सूर्य देव पूर्ण रूप से बादलों की ओट में छुप कर बैठ जाते थे।आरावली पर्वत से अपार जल के आने से बाढ़ की जमीं का बंधा उसी साल टुटा था ।गाँव का निचला हिसा पूरी तरह जलमग्न हो गया था ।छप्पर तो एक तरफ पक्के मकानों की छते भी टपकने लग गयी थी ।
उसके बाद लगातार ४-५दिनों तक बारिश की झड़ी कभी नहीं लगी ।हर साल बारिश तो होती है ,परन्तु कुछ समय में रुक जाती है ।जिससे धरती की गहराईयों में स्तिथ जल शिराओं तक जलराशी नहीं पहुँच पाती है|परिणाम स्वरुप भूमि के द्वारा उस जल का तुरंत अवशोषण कर लिया जाता है व् वाष्प बनकर उड़ जाता है ।

शेखावाटी क्षेत्र की परमुख बरसाती नदी काटली इस क्षेत्र की भागीरथी है ।अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद से जन्म लेने के बाद विभीन गांवोंसे निकली नालियों ,छोटे छोटे नालों व् पठारों से निकली जल की कुपिकाओं को अपने आप में समाहित करती हुई आगे बढती है ।किसी समय में यह पुरे वेग के साथ उफनती हुई गुमावदार बलखाती हुई बहती थी ।लगभग आधा किलोमीटर का क्षेत्र इसके आगोश में होता था ।अपने चिरपरिचित मार्ग से यह जब निकलती थी तो तटवर्ती गांवों का आवागमन अवरुद्ध हो जाता था ।सीमावर्ती गाँवों का संपर्क टूट जाता था । कुछ सधे हुई तेराक नदी के तट पर सहायता के लिए उपलब्द रहते थे ।गांवों का जनसमूह तटों पर मानो इसके स्वागत के लिए जमा हो जाया करते था।उस दौरान इस क्षेत्र का मिठा पानी का स्तर स्वतः ही बढ़ जाया करता था । तेराकी के शोकिनो के लिए इसके बहाव के ख़त्म हो जाने के बाद बने छोटे -छोटे तालाब सिखने का जरिया होते थे ।जहाँ वो अपनी जिजीविषा को शांत करते थे ।

इस नदी के शबाब पर होने के दौरान आवागमन पूरी तरह से ठहर जाता था ।कई -कई बार तो २-३ दिन तक पानी का वेग नहीं रुकता था।ऐसे में कॉपर प्रोजेक्ट के द्वारा ३५ -४०
साल पहले दोनों मुहानों को जोड़ने के लिए रपटे(सीमेंट की रोड ) का निर्माण करवाया गया ।ये रपटा मजबूत ककरीट पत्थर लोहे व् सीमेंट के योग से बना है ।जिससे यह आज भी पत्थर की मानिंद वैसे ही डटा हुआ है ।
परन्तु अब न तो वह बारिश की झड़ी लगती है और न ही ये नदी मचलती हुई आती है ।इन १७-१८ सालों में जन्म लेने वालों के लिए तो यह मात्र काल्पनिक कहानी बनकर रह गयी है ।आज सुदूर तक इस नदी के पाट व् बीच के क्षेत्र में कुचे व् आक के पौधे खड़े हुए निरंतर इसके आगमन के लिए प्रतीक्षारत है ।वहीँ दूसरी और मनुष्यों ने नदी के बहाव क्षेत्र में आवासीय निर्माण कार्य कर के इसके भविष्य में नहीं आने के प्रति पूरी तरह से आस्वश्थता जता दी है ।कई जगह छोटे छोटे बांध भी बना दिए गए है ।काटली नदी के बहाव क्षेत्र में गुहाला के समीप चिनाई में प्रयुक्त होने वाली उत्तम किस्म की बजरी होती है ।जहाँ से सुदूर स्थानों पर परिवहन होता है ।
क्या फिर से काटली नदी कभी आ पायेगी ?इसका उत्तर प्रक्रति के स्वरुप में छिपा हुआ है । 

उसने छोड़ दिया आना -जाना 
मानो कह रही हो मानव से 
तूने अच्छा सिला दिया मेरे दुलार का 
तुमने हमेशा देखा अपना हित
और की मेरी अनदेखी
बस अब बहुत हो चूका 
अब और नहीं सह पाऊँगी 

पहले वह थमी
फिर कुम्हलाई एक बेल की तरह
फिर बन गई सूखती हुई लकीर
और आज रह गयी दूर- दूर तक सिर्फ रेत............>>

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